मेले के गुब्बारे भी ख़ामोशी की तलाश में भटकते होंगे,
पूनम का चान्द अमावस की आस रखता होगा,
शहर की बसें किसी गाँव का रस्ता ढूँढती होँगी,
सागर की मछलियाँ किसी वीरान कुएँ का ख़्वाब देखतीं|
मैंने न तलाश की न ख़्वाब देखे,
इन सियाही की लकीरों में
मैं कबसे गुमशुदा हूँ|
पूनम का चान्द अमावस की आस रखता होगा,
शहर की बसें किसी गाँव का रस्ता ढूँढती होँगी,
सागर की मछलियाँ किसी वीरान कुएँ का ख़्वाब देखतीं|
मैंने न तलाश की न ख़्वाब देखे,
इन सियाही की लकीरों में
मैं कबसे गुमशुदा हूँ|
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