आइए जनाब, बनारस में आपका स्वागत है।
इसे अपना ही शहर समझिये,
हम और आप ग़ैर थोडी हैं!
गंगास्नान करियेगा,
विश्वनाथजी के दर्शन करियेगा।
अच्छा, आप यहां दहशत फैलाने आए हैं?
लाखों की जानें लेने आए हैं?
आप ही का तो शहर है,
जो मन चाहे करें।
हम कौन होते हैं रोकने वाले?
आप बम डालेंगे?
शौक से डालिये।
बीसों मारे गए तो क्या हुआ?
छोटे-बडे शहरों में
ऐसी छोटी-मोटी बातें तो होती ही रहती हैं।
आपने जो काम मुंबई और दिल्ली में किया,
भला यहां क्यों करेंगे?
अब बनारस और अयोध्या जैसी छोटी शहरों में
आपको क्या नसीब होगा?
फिर भी, यह हमारी ख़ुशकिस्मती है
कि हम पर भी आपके नज़र पडे।
आप कहते हैं कि काशी-अयोध्या
हमारे देश की नीव हैं,
हमारे देश के अस्तित्व का प्रतीक हैं?
जी ज़रूर, सही कहते हैं आप।
आप इस नीव को हिलाना चाहते हैं?
जी, अब आप ग़लत बात कहते हैं।
हज़ारों को मार लीजिये,
क़ौमी दंगे करवाइए।
जो चाहे करिएगा,
यह सपना छोड दीजिये
कि आप हमारी नीव हिला सकते हैं।
सैंकडों सालों से
सींचा हुआ नीव है यह।
आपकी ही तरह बहुतों आए।
तुर्की आए, मुग़ल आए, अंग्रेज़ आए।
उनका भी हमने स्वागत ही किया।
अतिथी देव जो ठहरा!
उन्होंने भी यही कोशिश की
कि हमें जड से हटाएं।
बदले, वही हममें मिल गए।
हिन्दुस्तान तो अटल ही रहा।
लाख कोशिश करिएगा।
नाकामयाब हुए तो क्या हुआ,
कोशिश बरकरार रखना चाहिए।
लेकिन इतना जान ही लीजिए,
आज बनारस, कल कहीं और:
भारत अमर रहेगा,
आप निश्फल ही रहेंगे।
यह कृति उमर बहुभाषीय रूपांन्तरक की मदद से देवनागरी में टाइप की गई है|
इसे अपना ही शहर समझिये,
हम और आप ग़ैर थोडी हैं!
गंगास्नान करियेगा,
विश्वनाथजी के दर्शन करियेगा।
अच्छा, आप यहां दहशत फैलाने आए हैं?
लाखों की जानें लेने आए हैं?
आप ही का तो शहर है,
जो मन चाहे करें।
हम कौन होते हैं रोकने वाले?
आप बम डालेंगे?
शौक से डालिये।
बीसों मारे गए तो क्या हुआ?
छोटे-बडे शहरों में
ऐसी छोटी-मोटी बातें तो होती ही रहती हैं।
आपने जो काम मुंबई और दिल्ली में किया,
भला यहां क्यों करेंगे?
अब बनारस और अयोध्या जैसी छोटी शहरों में
आपको क्या नसीब होगा?
फिर भी, यह हमारी ख़ुशकिस्मती है
कि हम पर भी आपके नज़र पडे।
आप कहते हैं कि काशी-अयोध्या
हमारे देश की नीव हैं,
हमारे देश के अस्तित्व का प्रतीक हैं?
जी ज़रूर, सही कहते हैं आप।
आप इस नीव को हिलाना चाहते हैं?
जी, अब आप ग़लत बात कहते हैं।
हज़ारों को मार लीजिये,
क़ौमी दंगे करवाइए।
जो चाहे करिएगा,
यह सपना छोड दीजिये
कि आप हमारी नीव हिला सकते हैं।
सैंकडों सालों से
सींचा हुआ नीव है यह।
आपकी ही तरह बहुतों आए।
तुर्की आए, मुग़ल आए, अंग्रेज़ आए।
उनका भी हमने स्वागत ही किया।
अतिथी देव जो ठहरा!
उन्होंने भी यही कोशिश की
कि हमें जड से हटाएं।
बदले, वही हममें मिल गए।
हिन्दुस्तान तो अटल ही रहा।
लाख कोशिश करिएगा।
नाकामयाब हुए तो क्या हुआ,
कोशिश बरकरार रखना चाहिए।
लेकिन इतना जान ही लीजिए,
आज बनारस, कल कहीं और:
भारत अमर रहेगा,
आप निश्फल ही रहेंगे।
यह कृति उमर बहुभाषीय रूपांन्तरक की मदद से देवनागरी में टाइप की गई है|
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