चमन के कोने में एक फूल मुर्झाई, न तुमने जाना न मैंने|
बनकर रह गयी महज़ एक परछाई, न तुमने जाना न मैंने||
उसकी ख़ुशबू जो मदहोश करती थी, क़तरा ब क़तरा सूखने लगी|
जलती तपती धूप में वह छटपटाई, न तुमने जाना न मैंने||
उसके रंग जिनसे महल सजते थे, फीके बेजान होने लगे हैं|
आँखों के दीदार के लिए तरसाई, न तुमने जाना न मैंने||
उसकी ताज़गी जिससे हर थकान मिट जाती थी, अब बिखरने लगी|
अब ख़ामोश है वह जो कभी इतराई, न तुमने जाना न मैंने||
वह जो किसी गुलदस्ते की शान बन सकती थी, गुमनाम बनी रही|
उसका तक़दीर - बस मुसलसल तन्हाई, न तुमने जाना न मैंने||
कोई ख़ानाबदोश उसे तोड़कर ज़मीन पर फैंककर चला गया
मालिन मलबे में डालकर चली आई, न तुमने जाना न मैंने
چمن کے کونے میں ایک پھول مرجھائ ، نا تمنے جانا نا مینے
بنکر رہ گیی محض ایک پرچھائ ، نا تمنے جانا نا مینے
اسکی خوشبو جو مدہوش کرتی تھی قطرہ بہ قطرہ سوکھنے لگی
جلتی تپتی دھوپ میں وہ چھٹپتائ ، نا تمنے جانا نا مینے
اسکے رنگ جنسے محل سجتے تھے ، پھکے بےجان ھہنے لگے ہیں
آنکھوں کے دیدار کے لیے ترسائ ، نا تمنے جانا نا مینے
اسکی تازگی جس سے ہر تھکان مٹ جاتی تھی ، اب بیکھرنے لگی
اب خاموسھ ہے وہ جو کبھی اتراٴی ، نا تمنے جانا نا مینے
وہ جو کسی گلدستے کی شان بن سکتی تھی ، گمنام بنی رہی
اسکا تقدیر بس مسلسل تنھاٴی ، نا تمنے جانا نا مینے
کوٴی خان بدوش اسے توڑکر زمین پر پھینک کر چلا گیا
مالن ملبے میں ڈالکر چلی آٴی ، نا تمنے جانا نا مینے
बनकर रह गयी महज़ एक परछाई, न तुमने जाना न मैंने||
उसकी ख़ुशबू जो मदहोश करती थी, क़तरा ब क़तरा सूखने लगी|
जलती तपती धूप में वह छटपटाई, न तुमने जाना न मैंने||
उसके रंग जिनसे महल सजते थे, फीके बेजान होने लगे हैं|
आँखों के दीदार के लिए तरसाई, न तुमने जाना न मैंने||
उसकी ताज़गी जिससे हर थकान मिट जाती थी, अब बिखरने लगी|
अब ख़ामोश है वह जो कभी इतराई, न तुमने जाना न मैंने||
वह जो किसी गुलदस्ते की शान बन सकती थी, गुमनाम बनी रही|
उसका तक़दीर - बस मुसलसल तन्हाई, न तुमने जाना न मैंने||
कोई ख़ानाबदोश उसे तोड़कर ज़मीन पर फैंककर चला गया
मालिन मलबे में डालकर चली आई, न तुमने जाना न मैंने
چمن کے کونے میں ایک پھول مرجھائ ، نا تمنے جانا نا مینے
بنکر رہ گیی محض ایک پرچھائ ، نا تمنے جانا نا مینے
اسکی خوشبو جو مدہوش کرتی تھی قطرہ بہ قطرہ سوکھنے لگی
جلتی تپتی دھوپ میں وہ چھٹپتائ ، نا تمنے جانا نا مینے
اسکے رنگ جنسے محل سجتے تھے ، پھکے بےجان ھہنے لگے ہیں
آنکھوں کے دیدار کے لیے ترسائ ، نا تمنے جانا نا مینے
اسکی تازگی جس سے ہر تھکان مٹ جاتی تھی ، اب بیکھرنے لگی
اب خاموسھ ہے وہ جو کبھی اتراٴی ، نا تمنے جانا نا مینے
وہ جو کسی گلدستے کی شان بن سکتی تھی ، گمنام بنی رہی
اسکا تقدیر بس مسلسل تنھاٴی ، نا تمنے جانا نا مینے
کوٴی خان بدوش اسے توڑکر زمین پر پھینک کر چلا گیا
مالن ملبے میں ڈالکر چلی آٴی ، نا تمنے جانا نا مینے
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