भक्त एक था नारायण का, नारायण का, नारायण का परम भक्त था नारायण का, बचपन में था, यौवन में था सुबह शाम पूजा करता था, घी और गुड़ के भोग चढ़ाता जय हरि की, जय नारायण, जय हरि की, जय नारायण एक दिन एक चूहा आया, घी चट गया, गुड़ चट गया श्री नारायण देखते रह गए, देखते रह गए, देखते रह गए हरी से बढ़कर चूहा होगा, भक्त ने समझा, भक्त ने माना जय चूहे की, चूहे की जय, जय चूहे की, चूहे की जय अब चूहे को भोग चढ़ाता, घी चढ़ाता, गुड़ चढ़ाता लेकिन एक दिन बिल्ली आयी, डरकर चूहा बिल में भागा चूहे से बढ़कर बिल्ली होगी, भक्त ने समझा, भक्त ने माना जय बिल्ली की, बिल्ली की जय, जय बिल्ली की, बिल्ली की जय अब बिल्ली को दूध पिलाता, बिल्ली बिल्ली जपता रहता एक दिन जब एक कुत्ता भौंका, दूध गिराकर बिल्ली भागी बिल्ली से बढ़कर कुत्ता होगा, भक्त ने समझा, भक्त ने माना जय कुत्ते की, कुत्ते की जय, जय कुत्ते की, कुत्ते की जय अब कुत्ते को अन्न चढ़ाता, उसकी पूजा वन्दना करता पर पत्नीजी ने डन्डा लेकर, उस कुत्ते को मार भगाया कुत्ते से बढ़कर पत्नी होगी, भक्त ने समझा, भक्त ने माना जय पत्नी की, पत्नी की जय, जय पत्नी की, पत्नी की जय