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Showing posts from August, 2009

Ganesh Chaturthi

Chaturthi Dead on the road, overrun by a car, Mooshik Bappa rots - his intestines pulled out by crows, one leg up in the air as if to ward off flies and a dog attempting to piss over him, pus oozing from his tail as bacteria go about their work - a whole ecology. Panchami Morning Arti on Ganesh day - priest in a hurry, a lay worshipper and some stray onlookers who seem to have nothing better to do. It is late morning - lunch-cooking time say the society women. The men say nothing. Shashti Loudspeakers blare devotional music all day; society residents pass by on their holiday errands. One or two stop to perhaps throw a few flower petals on the idol and peek at the empty prasad-dish. Saptami Squabbles break out over the empty prasad dish. Ashtami Quick visits to private Ganpatis - sense of community, devotion and who is providing what in prasad. Navami Cultural program by children dancing to filmi music. A girl cries backstage about a tight Kathak dress. The audience claps religiously; e...

गिरने दो दीवारों को

गिरने दो दीवारों को ताकि नए आशियाने बनेंगे| धूल में मिल जाने दो उन्हें ताकी गुज़रे ह्ंगाम बीत जाएँगे|| खन्ड़रों को गिराकर एक नया दौर बनाएंगे तुम और हम| गिरने दो दीवारों को ताकि नए आशियाने बनेंगे||

मुन्तज़िर आँखें

तुम आओगी, तुम आओगी, तुम्हारे ख़यालों में मुन्तज़िर आँखें किनारे के तलाश में भटकती लहरों के जैसे मुन्तज़िर आँखें फूलों के ख़ुश्बू में ख़ुमार होकर उन्हें ढूँढते हुए यहाँ वहाँ भटकती मन्डराती हुई एक एक तितली के जैसे मुन्तज़िर आँखें पहाड़ों से उतरकर, खेतें पार करकर, साहिल कहाँ साहिल कहाँ सागर के तलाश में दौड़ती हुई नदी के जैसे मुन्तज़िर आँखें समन्दर से उठकर हवाओं से, आसमानों से ज़मीन का राह पूछकर इस तलाश में आए हुए काले बादल के जैसे मुन्तज़िर आँखें हज़ारों साल एक ही मक़सद में ख़ुद को जलाते हुए कायनात को पार सूरज के तलाश में आए दुमदार तारे के जैसे मुन्तज़िर आँखें तुम्हारी तारीफ़ के लिए बेआल्फ़ाज़ खड़ा हुआ यह ख़ाना बदोश कान्हा की इबादत में बैरागी मीरा के जैसे मुन्तज़िर आँखें

यह रिश्ता, ﻳﻪ ﺭﺷﺘﺎ

जाने अनजाने बस बन गया है यह रिश्ता, गानों अफ़सानों से बुन लिया है यह रिश्ता, पर आज डोर टूटा - आज मैं ख़ाना बदोश पतंग मैं तो गुम जाऊँगा, तुम्हें बख़्शे फ़रिश्ता! ﺟﺎﻧﮯ ﺍﻧﺠﺎﻧﮯ ﺑﺲ ﺑﻦ ﮔﻴﺎ ﮨﮯ ﻳﻪ ﺭﺷﺘﺎ ﮔﺎﻧﻮﮞ ﺍﻓﺴﺎﻧﻮﮞ ﺳﮯ ﺑﻦ ﻟﻴﺎ ﮨﮯ ﻳﻪ ﺭﺷﺘﺎ ﭘﺮ ﺁﺝ ﮈﻭﺭ ﭨﻮﭨﺎ - ﺁﺝ ﻣﻴﮟ ﺧﺎﻧﺎ ﺑﺪﻭﺵ ﭘﺘﻨﮓ !ﻣﻴﮟ ﺗﻪ ﮔﻢ ﺟﺎﻭﻧﮕﺎ ، ﺗﻤﮩﻴﮟ ﺑﺨﺸﮯ ﻓﺮﺷﺘﺎ (Urdu written with the help of Unicode Urdu Text Convertor:- http://tabish.freeshell.org/u-trans/uconvert.html , Hindi written with the help of Gopi's Hindi Unicode Convertor:- http://www.higopi.com/ucedit/Hindi.html )

Shadows

(This is the same poem as the one in Hindi below.) Neither I said a word, Nor she. She came, Removed the ring And kept it on the table. Those ear-rings Which I had given Last Diwali, Those too. Neither I said a word, Nor she. I ordered Two cups of tea, Mine plain, Hers as usual - Without sugar, Without milk. All the letters That I had written, Tied with a Frail string. That mobile phone - cadeau d'amour - With its box. Neither I said a word, Nor she. The tea came We drank I paid the bill. She opened her handbag Kept twenty-two rupees Of her share And left. Neither I said a word, Nor she.

परछाई

ना मैंने कुछ कहा, ना उसने| बस वह आयी, अंगूठी उतारी और मे‍ज़ पर रख दी| वे कान की बालियाँ जो मैंने पिछले दिवाली को दी थी, वे भी| ना मैंने कुछ कहा, ना उसने| मैंने दो प्याले चाय मंगवायी, मेरी सादी, उसकी हमेशा जैसी - बिना शक्कर, बिना दूध| वे सब ख़त जो मैंने लिखे, एक नाज़ुक धागे से बान्धकर| वह मोबाइल फ़ोन - तोहफ़ा ए ईश्क़ - डिब्बे के साथ| ना मैंने कुछ कहा, ना उसने| चाय आयी, हमने पी, मैंने बिल भरा| उसने हैन्डबैग खोला अपने हिस्से के बाईस रुपये रखे और चली गयी| ना मैंने कुछ कहा, ना उसने|

Alba

Th' cottar in his clachan, Th' laird in his thane, All gang to th' same kirk, Th' God fer all is ain. Th' lochs and glens ay Alba, I likes them verra muckle. Th' firths and dales ay ma homeland I ken them syne I war a bairn. (In progress)