दो पल का साथ फिर ज़िन्दगी तन्हा, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ| दर्द फुग़ान हो जाने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ| 1 हवाएँ चुपके से कहती हैं कि मिलन की रुत आई तुम कहाँ हो, पर तुमसे बिछडने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ| 2 तुम आओगी, बोलोगी, हँसोगी, बडबडओगी, चली जाओगी, रुख़सत में तड़पने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ| 3 मेरे साँसों में अपनी ख़ुशबू छोड जाओगी, वह बहकाता रहेगा, उस याद में सिसकने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ| 4 घर आओगी तो बातें मत करना, दीवारें सुनकर देर दोहराएँगी, वह गूँज सुनकर रोने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ| 5 किसी चीज़ को हाथ मत लगाना, मेरा इबादतख़ाना भर गया है, यह इख़लास चूकने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ| 6 नज़राने मत दिया करो, शुक्रिया कहना मेरे बस की बात नहीं, ज़िन्दगी कम पडने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ| 7 तुम्हारी याद से पैर ज़मीन पर नहीं टिकते, तुम्हारा दीदार तौबा, ख़्वाब टूटकर गिर जाने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ| 8 हलकी बारिश की बूँदें फिर तुम्हारी आँसुओं की याद दिलाती हैं, इन्हें ...